पेगासस स्पाइवेयर (जासूसी सॉफ्टवेयर) का सरकारों द्वारा इस्तेमाल विश्व भर के नागरिक समूहों के लिए एक अहम मुद्दा बन गया है। भारत में भी कई सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों (ख़ास तौर से जिनकी पत्रकारिता मोदी शासन के लिए असुविधाएं पैदा करती हैं), नेताओं और कुछ उद्योगपतियों के मोबाइलों पर भी पेगासस पाया गया। कई लोग इस लिस्ट में भाजपा के कुछ नेता और मोदी के करीब माने जाने वाले अनिल अम्बानी जैसे पूंजीपतियों के नाम शामिल होने पर आश्चर्य भी जता रहे हैं। हालाँकि अभी तक भारत सरकार इस निगरानी में उसके हाथ होने के सवाल से बचती नज़र आ रही है, लेकिन तथ्य बहुत हद तक इसकी पुष्टि करते हैं। कोर्ट में तो सरकार ने कह ही दिया है कि वह इस सवाल पर ज्यादा नहीं कहना चाहती क्योंकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मसला है।
इजराइल की एनएसओ कंपनी द्वारा तैयार किया गया यह सॉफ्टवेयर निगरानी (सर्वैलन्स) के प्रचलित तरीकों से अलग है। यह अनधिकृत अंतःसरणशील (इन्वैसिव) जासूसी को नया आयाम प्रदान करने वाला साबित हुआ है। जासूसी की अब तक प्रचलित पद्धति से अलग इस स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर के जरिये किसी भी व्यक्ति की निगरानी या जासूसी बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के, तकनीकी स्वचलन द्वारा संभव है। इस पद्धति द्वारा पूरी जनसंख्या पर निगाह रखी जा सकती है। इस निगरानी के लिए ज़रूरी सामान लक्षित व्यक्ति या समूह खुद प्रदान करता है। लक्षित व्यक्ति का फ़ोन ही उस पर निगरानी का माध्यम बन जाता है। राज्य या कोई अन्य निगरानी एजेंसी को केवल उसके मोबाइल सेट पर दूर बैठे एक सॉफ्टवेयर डालने की देर है। बिना मानवीय हस्तक्षेप द्वारा की गयी यह जासूसी अब तक प्रचलित जासूसी की प्रक्रिया से काफी अलग है। इसके तहत अब खुफिया व्यक्तियों की जगह खुफिया सॉफ्टवेयर ले लेते हैं , जिससे निरीक्षण करना आसान, सस्ता और व्यापक हो जाता है।
I
जन-गतिविधियों पर निगरानी, पूंजीवाद में सामाजिक नियंत्रण का अभिन्न हिस्सा है। यह नियंत्रण सामाजिक स्तर पर राजकीय संस्थाओं और वैचारिक राजकीय तंत्रों (जिसमें धर्म, शिक्षा, राजनैतिक व अन्य सामाजिक संगठन इत्यादि शामिल हैं) के जरिये होता है। पूंजीवाद के सामाजिक पुनरुत्पादन में इन गतिविधियों की उत्पादक भूमिका हो यही इस नियंत्रण का मकसद है। यहां तक कि अपराध और तथाकथित व्यवस्था अवरोधी गतिविधियों का भी इस्तेमाल नियंत्रण की वैधता स्थापित करने के लिए और उसके सुदृढ़ीकरण को उचित ठहराने के लिए जरूरी है। निगरानी की व्यापकता और मकड़जाली जटिलता सामाजिक नियंत्रण का आधार है।
पूंजीवादी व्यवस्था की नींव पूंजी-श्रम संबंध है। इस व्यवस्था के आरम्भ से ही श्रमिकों का नियंत्रण उसकी सबसे अहम आवश्यकता रही है, इसी ने पूंजीवादी कानून प्रणाली को जन्म दिया। यही पूंजीवादी विकास का आधार भी है — श्रम और आपराधिक कानूनों में बदलाव, मशीनों और प्रबंधकीय तकनीकों में बदलाव इसी नियंत्रण को बनाए रखने के लिए जरूरी हैं। पूंजी बिना जीवित श्रम को नियंत्रित किये खुद का पुनरुत्पादन नहीं कर सकती। पूंजीवाद खास कर के आज के नव-उदारवादी दौर में अपने अस्तित्व को लेकर संकटग्रस्त रहता है, सामाजिक असमानता और श्रमिकों की अनियतता की स्थिति, किसी वक़्त भी भारी विद्रोह में तब्दील हो सकती है। राज्य और पूंजी दोनों अनियतता के शिकार हो चुके हैं। जुली कपल्स और केविन ग्लीन लिखते हैं, “कल्पना में, विरोध में और सत्ता को उत्तरदायी ठहराने की तत्परता में विद्यमान शक्ति की चुनौती के समक्ष नव-उदार निगरानी राज की भयाक्रान्तता और व्याकुलता प्रोफाइलिंग के जटिल सांख्यिकीय तकनीकों को विकसित करने की उसकी इच्छा को बढ़ावा देती हैं, ताकि उन कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों की, जिनसे सामाजिक व्यवस्था को खतरे का अंदेशा है, अग्रक्रमी शिनाख्त हो सके।”
आर्थिक और राजनीतिक दोनों स्तर पर निगरानी की ज़रूरत होती है । दोनों का मक़सद जन-जीवन के प्रबंधन और नियंत्रण द्वारा आदर्श अनुशासित नागरिक (श्रमबल) समाज की स्थापना है। राज्य और कॉर्पोरेट द्वारा किये जा रहे निगरानी का लक्ष्य है नागरिकों और समूहों के व्यवहार को प्रबंधित कर उन्हें एक तरह से व्यवहार करने पर बाध्य कर देना, क्योंकि उन्हें (जनता) पता है कि उनकी हर गतिविधियों पर नज़र रखी जा रही है, और सामाजिक व्यवस्था में फिट न होने वालों को अविलंबतः राजसत्ता के अनुशासन के तहत लाना।
नव-उदारवादी व्यवस्था ने नियंत्रण और निगरानी प्रणाली का बड़े पैमाने पर संस्थागतकरण कर दिया है, जहाँ उद्देश्य सिर्फ समाज को नियंत्रित करने का ही न रह कर बल्कि सामाजिकता में हो रहे बदलाव (चाहे वे खानपान से संबंधित हो या फिर राजनीतिक विचारधारात्मक से) की सूचना मिलती रहने का भी हो गया है। इस तरह की सूचनाओं से आर्थिक व्यवस्था के विरोधियों या खतरों के किसी भी संकेत की लक्षित पहचान की जा सकती है। इसका उपयोग राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर अपराधियों से निबटने और मुक्त बाजार का बाहरी और आंतरिक दोनों खतरों से रक्षा के लिए भी किया जा सकता है। चूंकि राज्य इस बड़े पैमाने पर निगरानी और आंकड़ो का प्रसंस्करण करने में असमर्थ है और साथ ही लोकतांत्रिक मूल्यों और निजता की हिफाज़त के प्रति समर्पित होने का स्वांग भी करना है, इसलिये डेटा संग्रह का काम निजी कंपनियों के जिम्मे देना लाभकारी सिद्ध होता है। एक हद तक नव-उदारवादी पूंजीवाद के तहत सर्विलान्स का औद्योगिकीकरण हो गया है।
कॉर्पोरेट पूंजी को भी व्यक्तिगत निजी सूचना (personal information) खुद को पुनरुत्पादित करने के लिये चाहिये। नव-उदारवादी वैश्वीकरण की आवश्यकताओं मे और आम आदमी के सामाजिक अस्तित्व और संबंधों को नए रूप से परिभाषित और विन्यस्त किया जा रहा है, और इस संबंध की मध्यस्थता (mediate) पूंजी कर रही है। इस सामाजिक को नियंत्रित करने का जरिया निगरानी होता है। पूंजी और पूंजीवादी राजसत्ता का दखल सामाजिक और निजी दोनों स्तर पर हो रहा है। आज की विश्व व्यवस्था का मुख्य तत्व गतिशील अंतरराष्ट्रीय वित्तीय पूंजी हर सामाजिक संबंधों को अपने अंदर समाहित कर वैश्विक नेटवर्क स्थापित करती है। व्यक्तिगत जानकारी इकट्ठा कर हर व्यक्ति और वैयक्तिकृत समूहों को वैश्विक नेटवर्क का अंग (node) बना देती है। व्यक्ति उपभोक्ता भी है और उत्पादक भी, पूंजी द्वारा सृजित स्पेक्टेक्ल्स का हिस्सा है।
II
निगरानी या जासूसी का इतिहास भी उतना ही पुराना है जितना वर्ग आधारित मानव समाज। किंतु पूँजीवादी व्यवस्था में इसके विस्तार और चरित्र दोंनो ही में व्यापक रूप से आये अन्तर को हम देख सकते हैं। जहाँ पूँजीवादी व्यवस्था से पहले जासूसी राजसत्ता को कायम रखने और राजतंत्र को मज़बूती प्रदान करने का जरिया थी, वहीं यह पूँजीवाद में श्रम शक्ति को नियंत्रित करने और पूंजी के संचय को निर्बाध गति से चलित करने का साधन बन गयी है। इस रूप में इसके दायरे में अब केवल बाह्य शत्रु या राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी न रह कर हर वो व्यक्ति आ गया है, जो किसी भी प्रकार से पूंजी के पुनरुत्पादन या संचय की अजेय मशीन का हिस्सा है — अर्थात इसके तहत समूची आबादी शामिल है।
फैक्ट्री से लेकर आज की गिग इकॉनमी में संलग्न सभी लोगों पर किसी न किसी तौर की निगरानी रखी जा रही है। पूंजीवाद के प्रगतिशील उदारवादी चरण में पूंजी के पुनरुत्पादन का केंद्र फैक्ट्री का शॉप फ्लोर हुआ करता था, जहां पूंजीपति “अलग अलग मजदूरों तथा मजदूरों के दलों पर सीधे और लगातार निगाह रखने का काम एक खास तरह के वेतनभोगी कर्मचारियों को सौंप देता” था (कार्ल मार्क्स,पूंजी भाग-I, प्रगति प्रकाशन, मास्को, पृष्ठ 357)। आज वित्तीय और सूचना प्रौद्योगिकी ने पूंजी के सृजन के दायरे को शॉप फ्लोर के संकुचन से आजाद कर दिया है और सम्पूर्ण समाज को सामाजिक फैक्ट्री में तब्दील कर दिया है। ऐसे में निगरानी के दायरे को भी इस विस्तार को मापना पड़ेगा।
निजी आज़ादी के झंडे तले ही आज निजता और व्यक्तिगत आज़ादी का सूचनाकरण (informatisation) और उस पर नियंत्रण किया जा रहा है। पूँजी के वित्तीयकरण के दौर में, निगरानी केवल मानव को नियंत्रित रखने तक सीमित न रह कर, इंसानी जिंदगी के हर पहलू पर नज़र रखने वाले तंत्र के रूप में तब्दील हो रही है। मानव अनुभव से उपजे आंकड़ों पर अपने अल्गोरिथम के सहारे, यह तंत्र उसके सोच और आचरण तक को अपने लिए इस्तेमाल करता है। गूगल जैसी कंपनियों के अल्गोरिथम द्वारा आपके इंटरनेट पर बिताए समय के आधार पर आपको उसी तरह के उत्पाद और अन्य जानकारी मुहैय्या करना भी इसी निगरानी शास्त्र का हिस्सा है। तभी तो मुक्त बाज़ार अर्थव्यवस्था की हिमायती द इकोनॉमिस्ट पत्रिका ने अपने लेख में डेटा की तुलना खनिज तेल से की थी (डेटा इज़ द न्यू आयल)। 20वीं शताब्दी में तेल ने जिस तरह से कंपनियों के लिये मुनाफे की पैदावार की थी, उसी तरह से 21वीं शताब्दी में डेटा कॉरपोरेट घरानों के लिये अरबों डॉलर का मुनाफा कमा रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2018 में, अमेरिकी कंपनियों ने उपभोक्ता डेटा प्राप्त करने और उसकी व्याख्या और विश्लेषण करने में अनुमानित 19 बिलियन डालर खर्च किए थे। सरकार, कॉर्पोरेट और वितीय पूंजी सभी के सामने जनता को नियंत्रित करना और उसकी सोच को जानना महत्वपूर्ण है, इसपर हम विस्तृत चर्चा आगे करेंगे।
पेगासस को लेकर उठ रहे सवाल का दायरा केवल एक स्पाईवेयर तक सीमित नहीं है, और न ही यह केवल निजता और लोकतांत्रिक अधिकार के हनन का सवाल है। निगरानी पूंजीवादी व्यवस्था का अभिन्न और आंतरिक हिस्सा बन चुका है। जनता के ऊपर सतत निगरानी सरकार और कॉरपोरेट दोनों की ज़रूरत है। जहां एक तरफ सरकार के लिए सत्ता की निरंतरता को बरकरार रखने के लिए निगरानी की जरूरत है, तो दूसरी ओर औद्योगिक और वित्ती पूंजी इस निगरानी का इस्तेमाल श्रमिकों की उत्पादकता बढ़ाने से लेकर उपभोगता की पसंद तक को जानने के लिए करता है। पेगासस ने किसी की आज़ादी कम से कम अभी तक नहीं छीनी है, इसने केवल कुछ डेटा संग्रह किया है। लेकिन यह संग्रह की पद्धति और उससे होने वाले सामाजिक स्तर पर मनोवैज्ञानिक असर अवश्य ही खतरनाक हैं। यह हमें दर्शाता है कि पूंजीवाद किस दिशा में बढ़ रहा है, और आने वाला समय किस तरह नियंत्रित और निगरानी वाला होगा। हम इसे अनुशासनात्मक नव-उदारवाद की तरफ जाना भी कह सकते हैं। नव-उदारवादी संकट जितना गहरा होता जाएगा उतनी ही तेज़ी से हम सुरक्षा, निगरानी और नियंत्रित करने की प्रवृत्ति का सुदृढ़ीकरण और व्यापकता का प्रसार होते देखेंगे। 20वीं शताब्दी के कल्याणकारी राज्य व्यवस्था में सैन्य-औधोगिक परिसर का निर्माण हुआ और नव-उदारवादी राज्य में सुरक्षा-औद्योगिक परिसर का निर्माण हो रहा है, जिसकी प्राथमिक अवस्था हम आज देख सकते हैं।
III
ब्रिटिश उपयोगितावादी (यूटीलीटेरियन) जेरेमी बेन्थम (और उनके भाई सैमुएल) ने निगरानी करने की प्रक्रिया के लिए विस्तृत योजना तैयार की थी जिसका नाम रखा था पैनोप्टीकॉन। वैसे तो पैनोप्टीकॉन की कल्पना एक आदर्श जेल के लिये की गई थी, जिसमे बंदियों पर हमेशा निगरानी रखी जा सकती हो, लेकिन पूंजीवादी समाज में अनुशासन की प्रवृत्ति इस आदर्श को सामाजिक स्तर पर निरूपित करती है। बेंथम की अवधारणा में सर्वव्यापी अवलोकन और व्यवहार संशोधन सामाजिक संस्थाओं के विन्यास में अंतर्निहित होनी चाहिए। वर्क हाउस, कारखानों, स्कूलों और अस्पतालों को समान तर्ज पर पुन:निर्मित किया जाना चाहिए जहां निगरानी लक्षित व्यक्ति को बिना दिखाई दिये और उसके सहयोग से संभव हो।
पैनोप्टीकॉन शब्द सामाजिक स्तर पर पूंजीवादी समाज में निगरानी का पर्याय बन गया है, जिसका श्रेय फूको को दिया जाता है, जिन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक डिसिप्लिन एंड पनिश में पैनोप्टीकॉन का विवेचन अनुशासनात्मक समाज द्वारा अपने नागरिकों को अधीन करने की एक प्रवृत्ति के बतौर किया था।
पैनोप्टीकॉन की अवधारणा और उससे जुड़े विचार, सामाजिक और निगरानी शास्त्र में हो रहे बदलाव को समझने के लिए भी महत्वपूर्ण है। पेरिस विश्विद्यालय की प्रोफेसर ऐनी ब्रुनों एर्नस्ट, जिन्होंने पैनोप्टीकॉन की अवधरणा का वर्गीकरण किया, के अनुसार, बेन्थम ने केवल जेल के कैदियों की निगरानी की बात नहीं की थी, बल्कि उन्होंने चार प्रकार के पैनोप्टीकॉन के स्थापना की बात की थी। जेल के अलावे रंकों/कंगालों (Pauper) की निगरानी के लिए पॉपर-पैनोप्टीकॉन — यहाँ कंगालों के ऊपर निगरानी के साथ ही उनके आवास, सुधार और काम पर लगाने के बारे में चर्चा की गयी है। इसके अलावा स्कूली बच्चों पर निगरानी के लिए क्रेसटोमैटिक पैनोप्टीकॉन जहां उनपर मास्टर बिना दिखाई दिये नज़र रख सकते थे। चौथा और अन्य तीनो से भिन्न या कह सकते हैं उल्टा है, संवैधानिक पैनोप्टीकॉन, जिसका जिक्र उन्होंने अपनी पुस्तक कांस्टीट्यूशनल कोड (1830) में किया था। बेन्थैम ने संवैधानिक निगरानी में पनोप्टिकॉन की कई बातों को उल्टा कर दिया। यहाँ ‘अच्छे’ नागरिकों द्वारा जनप्रतिनिधियों पर निगरानी रखने की बात की गई, ताकि एक न्यायप्रिय सरकार बनाई जा सके। लेकिन बेन्थम के लिए सम्पूर्ण जनता का मतलब संभ्रांत वर्ग से था, जो तात्कालिक ब्रिटेन में वोट और संपत्ति के मालिक थे। कंगालों और कैदियों को अनुशासित और संयत करने के उपाय अलग थे।
बेन्थम एक उपयोगितावादी थे, उनके लिये उपयोगी होने का मतलब उस कार्य से था जिससे ‘अधिकतम लोगों को अधिकतम सुख’ प्राप्त हो। इस अधिकतम सुख की प्राप्ति के लिये राजसत्ता ऐसे व्यक्तियों को दंडित करती है जो स्थापित वैधानिक नागरिक व्यवहार के मानदंडों से विचलित होते हैं — इन स्थापित मानदंडों पर प्रश्न उठाने वाले या अपरंपरागत विचारों को व्यक्त करने, सुनने और चर्चा करने वाले को अन्य अपराधियों की श्रेणी में डाल उन्हें बदलने या सजा देना का काम करती है। सत्ता, कल्याणकारी पूंजीवादी मॉडल वाली हो अथवा नव-उदारवादी पूंजीवाद की समर्थक या फिर फासीवादी निरंकुश सभी एक आदर्श नागरिक को गढ़ना चाहती है, जिसे राज्य और पूंजी द्वारा चिन्हित हितों के लिये इस्तेमाल किया जा सके और उसीके अनुसार संचालित भी किया जा सके। चाहे जनता को राष्ट्रवाद या धर्म या फिर किसी और नारे के इर्द-गिर्द लामबंध किया गया हो, पर उनके के व्यवहार को नियंत्रित तभी किया जा सकता है, जब उसके मन में यह भय बना रहे कि उसकी हर गतिविधि और क्रियाकलापों पर किसी अदृश्य सर्वभूत सत्ता की निगरानी बनी हुई है। यही सर्वभूत सत्ता का अर्थ भी है। सत्ता जो कण कण में व्याप्त हो, जिसके सर्वशक्तिमान होने पर किसी को भी कोई आशंका न हो। यही औद्योगिक सौहार्द और पूंजी के फलने फूलने के लिए ज़रूरी ज़मीन तैयार करती है। वरना फैक्टरियों से गलियों तक बृहत्काय स्तर पर सीसीटीवी, चेहरा पहचानने वाली प्रणाली और ऐसी कई मशीनों को लगाने के पीछे केवल सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करना तो नहीं हो सकता। यह हमारे दिमाग के किसी कोने में बिठाया जा रहा है कि हमारी हर गतिविधि पर नज़र है। चाहे हम पर नज़र न भी रखी जा रही हो फिर भी हमें हमेशा यह अहसास होता रहे की देखने वाला देख रहा है। यही पनोप्टिकॉन दर्शन की आधारभूमि है।
IV
बेन्थम का पैनोप्टीकॉन चाहे कभी भी मूर्त रूप में तैयार नहीं हुआ, पर वैचारिक स्तर पर इसने कई नए सिद्धांत को प्रभावित किया। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पैनोप्टीकॉन निगरानी के रूपक के तौर पर आज हमारे सामने मौजूद है। निगरानी शास्त्र के विशेषज्ञ डेविड लीओन कहते हैं, “हम ऐतिहासिक रूप से या निगरानी के आज के विश्लेषण में पैनोप्टीकॉन की अवधारणा से बच नहीं सकते हैं”।
पिछली शताब्दी में उत्पादन में परिवर्तन और आधुनिक मैनेजमेंट विज्ञान के विकास में हमें बेन्थम के विचारों की झलक दिखाई देती है। फोर्ड की असेंबली लाइन प्रोडक्शन, टेलर की मैनेजमेंट की नीति, या फिर आज की लीन-जस्ट इन टाइम, सभी नियमों का मुख्य लक्ष्य जहाँ उत्पादकता की बढ़ोत्तरी और सुधार था, वहीं इसे पाने के लिए मज़दूरों पर सतत निगरानी कि आवश्यकता को मुख्य बिंदु बनाया गया। निगरानी द्वारा कामगारों के मनोवैज्ञानिक और व्यवहारिक रूपरेखा (profiling) (जैसे उसके रहने, आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होने जिसमे कई बार यूनियन गतिविधियों को भी शामिल किया जाता है, ड्रग या शराब का आदी होना इत्यादि) तैयार किया जाने लगा। कई आधुनिक तकनीक पर आधारित कंपनियों में और कारखानों में किसी नये मज़दूर को रखने से पहले उसकी पृष्टभूमि का पता लगाया जाना आम बात हो गुई है। जिन मज़दूरों को इस गुणवत्ता और उत्पादकता के लिये अयोग्य पाया गया उन्हें रोज़गार से बाहर कर दिया गया। आधुनिक पूंजीवाद में निगरानी पूंजी के रक्षक की भूमिका अदा करने लगी है, जो उसके संचय और पुनरुत्पादन के लिये अपरिहार्य है।
पेगासस के इस्तेमाल के पीछे भी यही नियंत्रण और सूचना इकठ्ठा करने की मंशा रही है, जिसके जरिये जन-गतिविधियों पर निगरानी रखी जा सके और उन्हें नियंत्रित किया जा सके। जिन व्यक्तियों के फ़ोन पर पेगासस स्पयवारे पाया गया वे सभी पब्लिक स्फीयर में होने वाले बहसों और मुद्दों को प्रभावित करने की स्थिति में थे। केवल भारत ही में नहीं बल्कि विश्व भर में इस स्पाईवेयर का इस्तेमाल नागरिक सोच को प्रभावित करने वालों पर की गयी है।
निगरानी पर मार्क्सवादी अवधारणा
पूँजीवादी में निगरानी और सुरक्षा मार्क्सवादी विश्लेषण का प्रमुख विषय रहा, जिसपर मार्क्स उनके बाद मार्क्सवादी आधार पर कई विश्लेषण किये गए। मार्क्सवादियों के लिए सुरक्षा और निगरानी; राज्य, बुर्जुआ विधि विधान और राजनीतिक अर्थशास्त्र की आलोचना में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। मार्क्स के लिये निगरानी और सुरक्षा बुर्जुआ राज्य की दो महत्वपूर्ण आधारशिला थी। ज्यूइश प्रश्न में मार्क्स लिखते हैं “सुरक्षा नागरिक समाज की सर्वोच्च सामाजिक अवधारणा है”। निगरानी, मार्क्स के अनुसार, पूंजीवादी अर्थव्यवस्था और आधुनिक राष्ट्र राज्य का एक मूलभूत पहलू है।(क्रिस्चियन फ़च, पोलिटिकल इकॉनमी एंड सर्विलांस थ्योरी)।
पूंजी खंड एक में मार्क्स लिखते हैं, “जिस वक्त से श्रम पूंजी के नियंत्रण में सहयोग करने लगता है, उस क्षण से निर्देशन, निरीक्षण और व्यवस्थित करना पूंजी का एक काम बन जाता है। पूंजी के विशिष्ट कार्य के रूप में निर्देशन का काम अपनी खास विशेषताएं अख्तियार कर लेता है।” मार्क्स आगे कहते हैं कि उत्पादन प्रक्रिया में मजदूरों पर निगरानी का विशुद्ध निरंकुश कार्य पूंजीपति खुद ना कर इसे भी एक विशेष प्रकार के कामगारों के हाथ सौंप देता है, जिनका काम केवल मज़दूरों पर निगरानी रखने का होता है, “वह अलग अलग कामगारों या कामगारों के समूह के लगातार निरीक्षण करने का काम एक विशेष तरह के कामगार के हाथों में सौंप देता है। पूंजीपति के आदेश पर चलने वाली कामगार सेना में भी वास्तविक सेना की तरह अधिकारी (प्रबंधक), एन सी ओ यानी नॉन कमीशंड आफिसर (फोरमैन, ओवरसीयर) की जरूरत होती है, जो पूंजी के नाम पर श्रम प्रक्रिया पर हुक्म चलाते हैं। निरीक्षण का काम उनका स्थापित और एकमात्र काम बन जाता है।”(अनुवाद हमारा)
मार्क्स ने निगरानी को केवल आर्थिक क्षेत्र में होने वाली गतिविधि के तौर पर ही चिन्हित नहीं किया था, बल्कि उन्होंने इसके राजनीतिक क्षेत्र में किये जाने वाले उपयोग के बारे में भी अपने कई लेखों में जिक्र किया।
सवाल केवल नागरिक अधिकार का नहीं है
पेगासस मामले को संसदीय विपक्ष से लेकर नागरिक समाज के प्रतिनिधि सभी लोकतांत्रिक अधिकार के हनन के रूप में देख रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि आम नागरिकों पर हुई जासूसी/निगरानी व्यक्ति की निजता और संविधान में प्राप्त अधिकार का उल्लंघन है किंतु सवाल को केवल इस दृष्टि से देखना और विश्लेषित करना उसके दायरे को संकुचित लड़ता है और पूरी प्रक्रिया फिर कानून व्यवस्था के सवाल और उसके व्याख्या तक सीमित हो कर रह जाती है।
जासूसी और निगरानी पहले भी होती थी और आगे भी होती रहेगी। कांग्रेसी राज और मोदी राज में फर्क यह है कि जहां पहले ऐसी कार्यवाहियां पर्दे के पीछे होती थीं अब इसने खुला व नंगा रूप धारण कर लिया है। पूंजीवादी संकट जितना गहराता जाएगा सत्ता उसी अनुपात में जन नियंत्रण करने के लिए नये नये साधनों का इस्तेमाल करेगी।
मोर्चा पत्रिका में प्रकाशित
प्रत्यूष नीलोत्पल