शब्द शब्द शब्द
उकेरते रहो शब्द
भावहीन, उष्महीन
अर्थहीन होते शब्द
अंधी गलियारों में
अपना अर्थ खोते शब्द
पुराने घिसे पिटे शब्द
सर्वहारों की शक्ति को ढूँढ़ते
ये मरे हुए तुम्हारे शब्द
हज़ार बार दुहराओ या लाख बार
शब्द खोखले हो गए हैं,
पूंजीपतियों के खिलाफ बोलने वाले
तुम्हारे शब्द भी
तुम्हारी पार्टी लाइन की तरह
चौहद्दी में कैद हो गए हैं
जिसमे दुश्मन तुम्हे चाहता था देखना
पर तुम टपकाते रहो वही पुराने शब्द,
करते रहो पेश,
पुरानी बहसों को नया बना कर
अतरंगी सतरंगी शब्द
बिहार में सालाना आती बाढ़ की तरह
निष्प्रयोजित शब्द
धनबाद के कोयला खदानों से
निकलने वाली सायरन से भी कम
उपयोगी हो गए हैं तुम्हारे शब्द
लेकिन तुम इनको दुहराने के लिए अभिशप्त हो
महाभारत युद्ध के बाद के अश्वत्थामा की तरह
ना तुम्हारे शब्द जिंदा हैं ना तुम
9.8.2020