कार्ल मार्क्स की एक कविता


दुनिया भर में इंसानों के सबसे चहेते साथी, इंसानियत, हक़ और बराबरी के सबसे भरोसेमंद अपराजेय योद्धा, महान दार्शनिक, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ व समाजवाद के प्रणेता एवं महान शिक्षक कार्ल मार्क्स का इस वर्ष 202 वां जन्मदिन था।  5 मई 1818 को उनका जन्म हुआ।

सामाजिक न्याय, बराबरी और इंसानी हक़ अमर रहें!!! समाजवाद ज़िंदाबाद!!!


प्रस्तुत है कार्ल मार्क्स की एक अमर कविता:-

इतनी चमक दमक
के बावजूद तुम्हारे दिन
तुम्हारे जीवन को
सजीव बना देने के
इतने सवालों के बावजूद
तुम इतने अकेले क्यों हो
मेरे दोस्त?

जिस नौजवान को
कविताएं लिखने और
बहसों में शामिल रहना था
वो आज सडकों पर
लोगों से एक सवाल
पूछता फिर रहा है
कि महाशय आपके पास
क्या मेरे लिए कोई काम है?

वो नवयुवती जिसके हक में
जिंदगी की सारी खुशियां होनी चाहिए थी
वो इतनी सहमी-सहमी
और नाराज क्यों है?

अदम्य रौशनी के
बाकी विचार भी
जब अँधेरे बादलों
से आच्छादित है
जवाब मेरे दोस्त
हवाओं में तैर रहे हैं

जैसे हर किसी को
रोज खाना चाहिए
नारी को चाहिए
अपना अधिकार
कलाकार को चाहिए
रंग और तूलिका
उसी तरह
हमारे समय के संकट को चाहिए
एक विचार और आह्वान

अंतहीन संघर्षों,
अनंत उत्तेजनाओं,
सपनों में बंधे
मत ढलो यथास्थिति के अनुसार
मोड़ो दुनिया को अपनी ओर
समा लो अपने भीतर समस्त ज्ञान
घुटनों के बल मत रेंगो
उठो! गीत, कला और सच्चाई की
तमाम गहराइयों की थाह लो.

Author: Other Aspect

A Marxist-Leninist journal, based in India and aimed at analysing the contemporary world events from a Marxist-Leninist perspective.

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